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जब तलक कुचला न जाए ढंग से सर...

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हर ग़ली, हर मोड़ पे गाते हैं तक्षक।                           विष भरा अनुराग फैलाते हैं तक्षक ।।

खार के धोखे में मत रहिए परीक्षित।                            फूल ही, में बैठ के आते हैं तक्षक ।।

विष्णु के सिर पर भी चढ़ कर डोलते हैं।                       बेहुदा सम्मान जब पाते हैं तक्षक।।

जब तलक कुचला न जाए ढंग से सर।                     बैठकर बांबी में फुफुआते हैं तक्षक ।।

मौत बनकर ज़िंदगी से खेलते हैं।                         ख़ुद पे जब पड़ती है अल्लाते हैं तक्षक।।

हम ज़रूरत भर जो मांगें मार खाएं।                            भर कटोरा दूध पी जाते हैं तक्षक।। 

- आर्य हरीश कोशलपुरी

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